एक रात एक शहर सोया था चैन से ,
कुछ अजनबी साये चले,कुछ अनसुने से स्वर सुने,
सुबह उस शहर को जलते देखा ,
...
जिन्दगी को मानो थमते देखा |
सुबह उस शहर को जलते देखा ||
कभी भीड़ और शोर था चरों तरफ जहां,
उस रोज़ हर सड़क खाली हर जगह सून्सां,
सन्नाटे को चीरती आवाजों से अपनों को छलनी होते देखा |
सुबह उस शहर को जलते देखा ||
सारा शहर सदमे में था,थे परिंदे भी थर्रागाये ,
दरिंदों ने बड़ी जोर से बरसाई थी आग शहर पे,
उस आग में भी सायों से जवानों को लड़ते देखा ,
हर शहीद की जिन्दगी को बस तिरंगे में लिपटे देखा ?
सुबह उस शहर को जलते देखा !
सुबह उस शहर को जलते देखा ||