ज़िन्दगी की भाग दौड़ में में अक्सर हम ये भूल जाते हैं,
पैसे कमाने नही बल्कि रिश्ते बनाने इस दुनिया में हम आते हैं;
पैसे की चकाचौंध में हम रिश्तों को पीछे छोड़ हैं,
पर सुख हो या दुःख, काम आखिर में अपने ही आते हैं!!!
क्यों!!! क्यों हम इस मशीनीकरण में अपने होने का अर्थ भूल जाते हैं,
मशीनों के बीच रह कर हम भी मशीन बन जाते हैं;
और फिर क्यों हम अपने को इंसान कहलाते हैं,
जब रिश्तों को ताक पर रख कर बस पैसा ही हम कमाते हैं!!!
क्यों दूसरों को कष्ट दे खुद पर इतना इत्रा रहा,
अपने बच्चों के लिए कैसा उदाहरण बना रहा;
आगे बढ़ने की होड़ में इंसान क्यों है भाग रहा,
खाली हाथ आया और खाली हाथ ही है जा रहा!!!
पैसे कमाने नही बल्कि रिश्ते बनाने इस दुनिया में हम आते हैं;
पैसे की चकाचौंध में हम रिश्तों को पीछे छोड़ हैं,
पर सुख हो या दुःख, काम आखिर में अपने ही आते हैं!!!
क्यों!!! क्यों हम इस मशीनीकरण में अपने होने का अर्थ भूल जाते हैं,
मशीनों के बीच रह कर हम भी मशीन बन जाते हैं;
और फिर क्यों हम अपने को इंसान कहलाते हैं,
जब रिश्तों को ताक पर रख कर बस पैसा ही हम कमाते हैं!!!
क्यों दूसरों को कष्ट दे खुद पर इतना इत्रा रहा,
अपने बच्चों के लिए कैसा उदाहरण बना रहा;
आगे बढ़ने की होड़ में इंसान क्यों है भाग रहा,
खाली हाथ आया और खाली हाथ ही है जा रहा!!!